
जो भी लोग सीतामढ़ी में रहते है या रहते थे,कभी न कभी गुदरी बाजार सब्जी लाने जरूर गए होंगे। गुदरी बाज़ार अपने सीतामढ़ी के सिनेमा रोड में स्थित है, और यह अपने शहर का सबसे बड़ा सब्जी बाज़ार है।जब हम गुदरी बाज़ार जाते है तो वहाँ का क्या माहौल होता है, कैसे लोग सब्जी वाले से संवाद स्थापित करते है।
तो आइये चलिए मेरे साथ सब्जी खरीदने अपने सीतामढ़ी के गुदरी बाज़ार में।
मैंने गुदरी बाज़ार में सिनेमा रोड की तरफ से प्रवेश किया।एक रास्ता उस तरफ मिरचाईपट्टी से भी है। जो भी सब्जी खरीदने जाता है कोशिश उसकी यही होती है की कम से कम पैसे में अच्छे से अच्छा सब्जी अपने झोले में लेकर निकलूं।मेरी भी यही रहती है। घुसते ही मैंने सब्जी के दाम पूछने शुरू कर दिए। हाँ…. चाचा टमाटर कैसे? बउआ…. 20 रुपैये। उसकी तरफ दुबारा बिना देखे आगे चल दिए। आगे बढ़ने पर….हाँ भईया गोभी की भाव हई?हई त 20 के लेकिन तोरा लेल 18 लग जतई….कै किलो तौल दियो? (पता नहीं हम उसके कौन लग रहे है जो मेरे लिए 18 लग जायेगा) अच्छा आ रहल छी आगे से। ऐसे करते करते मैंने सारे सब्जी के दाम पूछ लिए और बाज़ार के अंत में पहुँच गया, जहाँ पर मुढ़ी कचरी का दुकान है ना,वहीँ पर।
अब इधर से खरीदना चालू होता है, जिसका दाम सबसे कम था और सब्जी भी अच्छी थी। आलू प्याज वाला लगभग सब का कोई न कोई तय होता है और वो वहीँ से लेता है। इसलिए उसमे ज्यादा कोई दिक्कत नहीं है। फिर भी कहीं और दाम पूछना नहीं भूलते हैं।

इधर भिंडी तौलबा ही रहे थे की पीछे से साँढ़ आ गया। झोला छोड़ के वहीँ भागे। वही गुदरी वाला साँढ़ जो हमेशा घूमते रहता है और जो सब्जी अच्छा लगे बिना पूछे खा लेता है ,कहीं भी कभी भी। आगे जब 15 रूपये गोभी एकदम ताजा ,झुक कर ले ही रहे थे पीछे से कोई साईकल से धक्का मारते हुए शान से निकल गया। हम भी बड़बड़ा के उसको माफ़ कर दिए।तभी उधर से शुद्ध 100% देसी गालियां सुनाई पड़ी। उधर देखा की एक चाचा सब्जी वाले से भिड़ गए हुए थे। वो कह रहे थे की हम पैसा दे दिए है और सब्जी वाला कह रहा था की वो पैसा नहीं दिए हैं। आसपास के लोग का अपना सब्जी खरीदनाइ छोड़ के उसी को देखने लगे। भाई फ़ोकट का मज़ा अब कौन छोड़े। आप महिलाओं को गौर कीजियेगा एक भी प्याज अगर सब्जी वाला अपने हाथ से रख दे तो उस प्याज में जरूर कोई ना कोई खराबी निकाल कर उसे बाहर निकाल देगी।आलू प्याज भी 5-5 किलो ले लिए हम। अगर आप गुदरी गए और बिना पॉकेट कटाए वापस आ गए तो समझिये की आप भाग्यशाली हैं। कुछ लोग इसी काम के लिए गुदरी जाते हैं, वे जाते तो बिना पैसों के है लेकिन सब्जियां झोले भर कर लाते हैं। अंत में मैं सब्जी लेते हुए उधर से निकला….मीट मछली का ख़ुश्बू लेते हुए। बाहर निकल कर मधुर जलपान के सामने जो मिठाई का ठेला लगता है उसके यहाँ 4 गो रसगुल्ला दबा के रिक्शा पकड़े और चलते बने…..

इस हास्य के लेखक आनंद कुमार हैं।
Excellent!
गजब लिखल हा भाई।
hahaha …
साचो बहुते बढिया है ….एकदम मजा आ गया हो…
वैसे भाई जी हम बरा भाग्यशाली है ….एको बार पैकेट ना कटा है हमर