सीतामढ़ी पुनौरा धाम से ५ किलोमीटर दक्षिण पश्चिम में स्थित है राघोपुर बखरी गाँव. तकरीबन ३००० लोगों की जनसँख्या वाले इस छोटे से गाँव को सीतामढ़ी में बहुत कम लोग जानते हैं ।
तो आइये आपको सीतामढ़ी के सबसे पुराने मंदिर की सैर कराते हैं।
तकरीबन १५०० ई. में बना था राघोपुर बखरी का राम जानकी मंदिर। मंदिर की चारदीवारी तकरीबन २० फीट ऊँची थी और मंदिर का भाग तकरीबन एक बीघे में फैला था। मंदिर को किसने बनवाया इसकी जानकारी स्थानीय लोगों को भी नही है, मगर किंवदंती के अनुसार यहाँ 9 पीढ़ी से महंथ इसकी देख रेख कर रहे हैं, औसतन एक महंथ ५०-६० वर्ष तक मंदिर की देख रेख करते हैंजो की मुग़ल कालीन सभी बंगाली मंदिरों में सामान्य है।जिससे अनुमान लगाया जा सकता है की इस मंदिर की उम्र तकरीबन ५०० साल या इससे अधिक है। स्थानीय लोगों का कहना है की मदिर के पास एक जमाने में १३०० बीघा जमीन हुआ करती थीजो की मुग़ल कालीन सभी बंगाली मंदिरों में सामान्य है।
वास्तुकला: इस मंदिर में पूर्वी भारत के तकरीबन2000 से ३००० वर्ष पुराने “टेराकोटा ब्रिक बंगाली आर्किटेक्चर” की झलक देखी जा सकती हैजो की मुग़ल कालीन सभी बंगाली मंदिरों में सामान्य है।

जिसमे सबसे प्राथमिक दो रेखा डुल हैं,जो की मुग़ल कालीन सभी बंगाली मंदिरों में आम तौर पर देखे जाते हैं ।

सीतामढ़ी में इससे मिलते जुलते दो मंदिर और है, अन्हारी धाम और दमामी मठ. मंदिर का प्रवेश किलानुमा है, जो दो मंजिला है. प्रथम तल पर जाने के लिए सीढ़ी अब उपलब्ध नहीं है।

इसके छत और दीवारों का निर्माण ईंट और सुर्खी से किआ गया है।

छतों में नील रंग का प्रयोग किआ गया है, जो इसे बेहद खुबसूरत बना देता है।

मंदिर का मुख्यआकर्षण गर्भगृह के प्रवेश के बायीं ओर लगा विशाल घंटा है,जिसकी शोभा देखते ही बनती है । घंटे का वजन तकरीबन ४०० किलो है ।इसकी धातु दमामी मठ, नौलखा मंदिर , जनकपुर से मिलती जुलती है, जिसे अभी तक वैज्ञानिक पता नही लगा पाए हैं. इस घंटा में जंग का कोई निशान नही है।इसकी संरचना सम्मोहित करती है। घंटे के नीचे चरण पादुका स्थित है जिसपर श्री चतुर भुजाय नमः अंकित है।





वर्तमान स्थिति: समय की मार सहते हुए इस मंदिर का इतने वर्षों तक खड़ा रहना इस बात का प्रमाण है की इस की नीव काफी मजबूत होगी । यह मंदिर वास्तुकला का अद्भुत नमूना होते हुए भी उपेक्षा का शिकार है. ये उन लोगों के ऊपर भी एक करारा तमाचा है, जो कहते हैं की सीतामढ़ी में ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व की जगहें उपलब्ध नही हैं. उचित रख रखाव के अभाव में इस मंदिर की संरचना चरमरा गयी है.बेतरतीब उगते पेड़ पौधों ने इस मंदिर को खंडहर का रूप दे दिया है। अगर शीघ्र ध्यान नही दिया गया तो इस मंदिर की सिर्फ स्मृति ही शेष रह जायेगी।



इस मंदिर की विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए हम स्थानीय प्रशासन एवं पर्यटन विभाग से आग्रह करते हैं की जिले की इस धरोहर की अविलम्ब रक्षा की जाय और इस मंदिर को पर्यटन स्थल बनाया जाय ।
नोट : सभी तसवीरें -माधव सिंह भारद्वाज
बहूत बढिया बात हे जी
Government k pass letter likha jaye.eske rakh rakhav k liye waise aapka paryas achha h.
बहूत बढिया बात हे जी
जय बिहार
प्रासासन एवं जन प्रतनीधि के साथ साथ आप जनता को भी ध्यान देना होगा क्युकि मंदीर के बाहरी हिसा आम लोग अधिग्रहन चुके है
प्रासासन एवं जन प्रतनीधि के साथ साथ आम जनता को भी ध्यान देना होगा क्युकि मंदीर के बाहरी हिसा आम लोग अधिग्रहन चुके है
सीतामढ़ी के प्राचीन धरोहर को अक्षुण्ण रखने के लिए समवेत प्रयास की जरूरत है।
जानकारी देने के लिये धन्यवाद
Great information, Madhav bhai. I didn’t know about it.
Adbhut.Discover karne wale sabhi sambadha bandhu ka abhinandan hai.
Its really amazing ..plz post more post about historical temple & places of sitamarhi..and feeling very bad that our administration does not take intrest to save our historical places and temple..
जी हां ये मंदिर बहुत ही पुरानी है
ऐतिहासिक धरोहर है ईसकी देखभाल की जरूरत है नही तो धीरे धीरे यह नष्ट हो जायेगी
Government k pass letter likha jaye.eske rakh rakhav k liye waise aapka paryas achha h.
सबसे पहले भरद्वाज जी को धन्यवाद की हमें अपने इतिहास से अवगत कराया सही में इसकी देखभाल होना चाहिए इसका समर्थन करते हैं
Dhanyawaad Didi