दोस्तों अगर आप सीतामढ़ी में रहते हैं या रहते थे तो आपको पता होगा की हमारे यहाँ एक प्रेमी और प्रेमिका को कितने प्रकार के दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।लोग कैसे घूरते है।कैसी बातें करते हैं।लेकिन सलाम उनके जज्बे को जो इतने मुश्किल हालातों में भी एक दूसरें का साथ नहीं छोड़ते।प्रेम करने वालों के लिए हमारा शहर किसी कारगिल से कम नहीं हैं। हर मोर्चे दुश्मन बंदूक तान के तैयार खड़ा है। आज हम एक कहानी माध्यम से उन दिक्कतों का जिक्र करेंगे हल्के फुल्के अंदाज़ में इसका मज़ा लीजिये। दिल पर लेने की कोई जरुरत नहीं है।
मैं शहर के गौशाला चौक का रहने वाला हूँ। और बदकिस्मती से मेरी “महिला मित्र” बसबरिया की रहने वाली है। आप जानते होंगे की ये दोनों स्थान एक दूसरे के बिलकुल विपरीत कोने में है। बताइये कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा हमे एक दूसरे को मिलने के लिए। 14 फरवरी वैलेंटाइन डे के दिन हमलोगों ने पूरा दिन साथ बिताने का फैसला किया। सुबह सुबह मैं स्नान कर के अपना हीरो होंडा ले कर निकल गया। वो 8 बजे मेहसौल चौक पर आने वाली थी। 7:30 तक मैं निकल चुका था। 8 बजने से 10 मिनट पहले मैं पहुँच चुका था और कृष्णा स्वीट्स के पास उसका इंतज़ार करने लगा। वो उधर से ऑटो से आई। मुँह पर स्टॉल(सुरक्षा कवच) बांधे हुए। फिर बाइक पर बैठ गई। उसके बाद हमलोग पुनौरा मंदिर के लिए निकले। भाई दिन भले अंग्रेज़ों का हो वेलेंटाइन लेकिन उस दिन का शुरुआत भी हम मंदिर जा के भगवान् का आशीर्वाद ले कर ही करते है। वहाँ पूजा करने के बाद मंदिर के पीछे तालाब के किनारे सीढ़ियों पर हम जा के बैठ गए। कुछ कुछ बातें कर रहे थे। वो आज निहायत ही ख़ूबसूरत लग रहीं थी। नजरें उनके चेहरें से बिलकुल हटाने का मन हीं नहीं कर रहा था।बस टकटकी लगा कर हम उन्हें देख रहे थे। और वो कुछ अपने माँ पिताजी की कहानी सुना रही थी। हालाँकि कहानी में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं थी।लेकिन मैं ऐसा प्रतीत कर रहा था जैसे मैं बहुत मज़े से उनकी कहानी सुन रहा हूँ। बीच बीच में मैं बोल देता था- ‘अच्छा ऐसा हुआ’। ठंड की सुबह थी। इतने सुबह ठंडी में कौन आएगा मंदिर। यहाँ हमलोग…. वो क्या कहते है न अंग्रेजी में ‘quality time’ वही बिता रहे थे।उनके लिए एक ग़ुलाब का फूल लेकर गए थे हम। उनके हाथों जब दिए तो वों बहुत ही खुश हो गई। तोहफा लेना उन्हें पसंद नहीं है।इसलिए कोई तोहफा नहीं ले गए थे। थोड़ी देर बाद हमलोग आखिरी सीढ़ी पर जा के बैठ गए और अपने पावं पानी में डाले।बहुत ठंडा था पानी। लेकिन प्यार में ठंडी गर्मी कहाँ कुछ पता चलता है। बस इंसान एक दूसरे की ख़ुशी के लिए सब कुछ करता है। लगभग 10 बजे हम वहाँ से निकल गए। अब लोग आने शुरू हो गए थे मंदिर में।अभी भी हल्का कुहासा लगा हुआ था। अब हम पहुँचे बजरंग सिनेमा रोड में तेज होटल में कुछ नाश्ता पानी करने। हल्का खाने के बाद हम नगर पार्क में गए। वहाँ बहुत सारे लोग टहल रहे थे। खेल रहे थे। हम जा कर एक बेंच पर बैठ गए। उधर से जाने वाले लोग जहां से उनकी दृष्टि देखना शुरू करती है वहाँ से हमें देखना शुरू कर देते थे। और जहाँ तक वो देख सकते थे।उतनी दूर तक हमें देखते थे। कुछ लोग तो ऐसे घूर रहे थे जैसे हमारे जैसे प्राणी उन्होंने अपने जीवन में पहली बार देखा हो।बच्चे भी बॉल लेने जब इधर आते थे तो एक बार हमारी ओर देख ही लेते थे और मुस्कुरा कर चले जाते थे। ये सब चीजें हमारी “महिला मित्र” को बहुत ख़राब लग रही थी। वो कह रही थी की क्या हमनें कोई अपराध किया है जो ये लोग ऐसे देख रहे है और फब्तियां कस रहे है। मैंने उन्हें समझाने की कोशिश की, जाने दीजिए छोड़िये इन बातों को।यहाँ के लोग ऐसे ही हैं। हमें अब लग रहा था कि पार्क से निकलना चाहिए।12 बजे के करीब हम वहां से निकले और रिंग बांध होते हुए, अपने विद्यालय को देखते हुए जहाँ से हमारा प्यार शुरू हुआ था, हम डुमरा की तरफ निकल गए। मेहसौल चौक पर जाम लगा हुआ था। कुछ हमारी वजह से भी, कुछ लोग गाड़ी धीरे कर पूरा ऊपर से नीचे तक हम लोगों को scan कर रहे थे। और मन में शायद सोंच रहे थे की… ई कहीं फलना बाबू के बेटा या बेटी न त है।
शांति नगर में एक नया रेस्टोरेंट खुला है हम उसी में गए खाना खाने। अंदर गए तो मेनेजर भी एक बार पूरा चारों ओर से घूर कर देखा तब बैठने के लिए बोला। खाना आर्डर लेने आया वेटर खूब मुस्कुरा रहा था। हम तो उसके मुस्कुराने का कारण जानिए रहे थे। ससुरा खाना खिलाने पर कम और हमारी मित्र पर ज्यादा ध्यान दिए हुआ था। हमलोग वहाँ अच्छे से खाना खाते हुए बातचीत कर रहे थे। थोड़ा रिलैक्स लग रहा था यहाँ की कोई घूर नहीं रहा है…मेनेजर और वेटर के सिवा। हमलोगों ने बहुत सारे फोटोज़ भी लिए साथ में। यहाँ हम लगभग 2 घंटे रुके।साढ़े 3 बजे के आसपास हम वहाँ से निकले उन्हें साढ़े 4 बजे तक घर भी पहुँचना था। तो हम डुमरा से ही सीधा अमघट्टा रोड होते हुए मेहसौल गांव होकर आज़ाद चौक की ओर निकल गए।आज़ाद चौक पर उन्हें छोड़ दिया और रिक्शे में बैठा दिया। रिक्शा वाला भी मुझे अपने गुनाहगार की दृष्टि से देख रहा था। खैर, उन्होंने हाथ हिलाकर मुझे विदा किया और मैं गाड़ी स्टार्ट कर गौशाला चौक की ओर निकल गया।
उम्मीद है आपको यह काल्पनिक कहानी वास्तविक लगी होगी।किसी भी त्रुटि के लिए माफ़ी चाहूँगा।
धन्यवाद..
nyc .. kalpnik to tavi pata chal gaya jab use gift pasand nhi tha
Sach me kuch girls aisi v hoti hai jinhe gift pasand nahi hota… hahaha
Exceptional case me
Almost Done Omprakash Bhai.
Kya chut gya bataiye Parth bhai
बेहतरीन
Dhanyawad….credit aapko jata hai.
Shandar. 1 jagah shayd aap nahi gaye celebration jo marani asthan ke pas hai.
Ha wo chut gaya….ab ek hi din me kaha kaha jaye sir. Hahaha
बहोत खुब सर रीयल सटोरी लगती है हमने तो पुरी कल्पना कर के पढी और जीवंत भी लगी सच है हम युवको के परिस्थतियो पे पूर्णतह् आधारीत है सपेशली वो रेस्तरा वाली कहानी।
Aur aapka love sadi ho gya unka
omprakash ji.. believe me. each line of yours appears to me very real and very romantic… bas apki last line ne dil tod di hamari… samjhe marde!!!!! good luck for your next blog.
Are bhai saab aisa mat boliye.kis line ne dil tod di aapki? Bataiye ,mai aage se dhyan rakhunga
Ha ha ha ha ha,bahut miss krta hoon un dino ko jb main bhi aesa kiya krta tha lkin meri wali to mirchai patti ki thi,main bhi wahi ghumne jaya krta tha jaha jaha apne apne story me likha hai ,ab main delhi me hoon aur meri g.f mera mtlb mhila mitr kolkata me hai Mnn to krta hai main bhi wahi chla jau lkin kya kru ye papi pet ke liye delhi me job krna pdta hai ,baki delhi ke bare me aap log ko pte hoga,ab rhne dete baki hm bad me aap logn ko btaiye denge kahai Note -ye kahani bhi kalpnik hai,Naraj mt hoiye hastr rhiye mushkarate rhiye Bye
Overall nicely & smooth execution of moral stories.
And really great job ❤️❤️
Waah Bhai Mann Ka baat kahe he aaj..