बहुत दिनों बाद लौटा हूँ आज
बरामदे में बैठा देख रहा हूँ
वही पुराना शहर
बस उसकी उम्र बढ़ सी गई हो जैसे
थोड़ा थका, झुके कन्धे लिए
अपने होने का अर्थ टटोलते हुए
बदलाव की आस में
हर सुबह उठता है और
हर रात सन्नाटे में डूब जाता है
पर टूटा नहीं है
अब भी अपनों को
अपनी छाया में समेटकर खड़ा है
तभी माँ आ जाती है
हाथ में वही प्यार से भरा
एक प्याला चाय लेकर
पास आकर बैठ जाती है
और पूछती है “इस बार कितने दिनों के लिए?”
जवाब उसे भी मालूम है पर
आस कहाँ टूटती है
विषय बदलकर कहता हूँ
कितने दिनों बाद भी लौटूँ
माँ तेरे चाय का स्वाद नहीं बदलता
कहती है, याद है इंजीनियरिंग की परीक्षा के दिन
रात को सोते से उठाकर कहता था
माँ तेरी जादू वाली चाय बना दे
दो-तीन घन्टे निकल जाएँगें
और जब तू रिज़ल्ट में टॉप पे आया
कहने लगा सब तेरी जादुई चाय का कमाल है
जब अमेरिका में नौकरी लगी तो
कहने लगा माँ तेरी चाय बहुत मिस करूँगा
पर वहाँ जाकर कॉफ़ी की एेसी आदत पड़ी
माँ की चाय भूल गया
माँ की तरफ़ देखा तो लगा
बूढ़ा शहर उनकी आँखों में उतर आया था
अचानक कुछ चुभता सा लगा अन्दर
उठते हुए कहा
एक कप चाय और बना दे
इस बार तुझे लेने आया हूँ…
Nice one, Snigdha! Keep it up 🙂
very nice