मैने लाख मिन्नते की ज़िंदगी से,
मुझे इस तरह आजमाया ना करो,
कभी देकर हज़ार खुशिया,
कभी ग़म के बोझ से रूलाया ना करो.
मै थक जाती हू,बेबस और हतास हो जाती हू,
ऐ जिन्द्गी तेरी परीक्षा से निराश हो जाती हू.
तेरी फितरत है रंग बदलना,
कभी खुसी तो कभी ग़म देना
किसी को ज्यादा तो
किसी को कुछ कम देना.
मै मन मे इन सवालो के पतंग उड़ा रही थी
और उसकी डोर थामे जिन्द्गी मुस्कुरा रही थी .
बोली हसकर,
हम तुम्हे इसलिए आजमाते है,
पथर भरी राहो पर तुम्हे चलना सिखाते है
जिन्दगी का सार हर किसी ने जाना है
हर आदमी इस हकिकत को जीता है और
जो समझे मेरे सार को असली ‘जिन्दगी’ वही जीता है.
बाक्कई बहुत सुन्दर लेख
Dhanywad
Its Pleasure to read you!! Great Work
Hope here we gonna read you some more frequently