Thursday, March 23, 2023
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जानकी नवमी, विश्व में सबसे खास सीतामढ़ी।

वैशाख मास की नवमी तिथि जानकी (सीता जी) नवमी के नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन जानकी जी की पूजा अर्चना की जाती है। राजा जनक के यहां सीता जी का प्राकट्य इसी दिन हुआ था। शास्त्रों के अनुसार मिथिला के राजा जनक के कोई संतान नहीं थी, उन्होंने गुरु के आदेशानुसार संतान प्राप्ति के लिए यज्ञ करने की तैयारी शुरू की तो पहले यज्ञशाला बनाने के लिए हल से भूमि को समतल करना आरम्भ किया। जब राजा जनक हलेश्वर स्थान से शुरू कर हल चला रहे थे तो दोपहर के समय पुनौरा की धरती में से एक सुन्दर कन्या प्रकट हुई जो साक्षात लक्ष्मी ही थी। उस दिन नवमी तिथि थी। राजा ने उस बालिका को गोद में उठा कर गुरु जी को दिखाया तो उन्होंने राजा जनक के यहां प्रकट होने से उस कन्या का नाम जानकी रख दिया। इस प्रकार जगदीश्वर की वल्लभा देवेश्वरी लक्ष्मी सम्पूर्ण लोकों की रक्षा के लिए राजा जनक के भवन में ही पली और बड़ी हुई और बाद में इनका विवाह राजा दशरथ के पुत्र मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्री राम जी के साथ हुआ।

जानकी नवमी के उत्सव सीतामढ़ी में बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता है,जानकी नवमी से पहले श्री ज़ानकी जन्म भूमी पुनौरा धाम से पंचकोसी परिकर्मा य़ात्रा निकली जाती है, हलेश्वर स्थान सीतामढ़ी होते हुए पुनौरा धाम पहुंचती है।

सौभाग्यशाली महिलाएं अपने पति की मंगलकामना तथा उनकी दीर्घायु के लिए इस दिन व्रत भी करती हैं तथा यथासंभव वस्तुओं का दान करके पुण्य की भागी बनती हैं। इस दिन जो महिलाएं व्रत नहीं भी कर सकतीं वे जानकी स्तोत्र, श्री रामचरित मानस और श्री सुन्दरकाण्ड का पाठ करके भी पुण्य कमा सकती हैं। महिलाएं पुत्र प्राप्ति की कामना से भी इस दिन व्रत करती हैं।

पुण्य फल
जानकी अथवा सीता नवमी के दिन व्रत करके महिलाएं 16 प्रकार के महान दान किए जाने का फल प्राप्त करती हैं। इस दिन अनाज का सेवन नहीं करना चाहिए तथा पृथ्वी, गोदान, स्वर्ण दान, कन्या दान तथा सभी तीर्थों पर स्नान करने तथा उनके दर्शन करने के बराबर फल की प्राप्ति होती है।

इस दिन जानकी जी का पूजन किया जाता है तथा उन्हें मौसम के अनुसार नए फलों का भोग लगाया जाता है। यह व्रत सब प्रकार के सुखों को देने वाला तथा सौभाग्यवर्धक है। परिवार में खुशहाली लाने के लिए भी महिलाएं यह व्रत करती हैं। इस दिन सुहागिन महिलाएं करवाचौथ के व्रत की तरह सुहाग की सामग्री अर्थात मेहंदी, बिंदी, चूडिय़ां, कंघी, रिबन, परांदा, बिछुए, पायल और वस्त्र आदि का दान भी दक्षिणा सहित करती हैं।

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