हिंदुस्तान प्रगति के ओर अग्रसर है और इस प्रगति में भवन निर्माण का बहुत बड़ा योगदान है. भवन निर्माण में प्रयोग में आने वाले विभिन्न सामग्रियों में से एक है बालू. बालू या रेत को मुख्यतः नदी के किनारों से निकाला जाना चाहिए, मगर समय की मांग और पर्यावरण की चिंता ना करते हुए लोगों ने स्वार्थवस् इसकी खुदाई नदी के तल से करनी शुरू कर दी .
नदी की तल से खुदाई का मतलब है की नदी की गहराई को बढ़ाना, नदी जब अपनी प्राकृतिक गहराई को छोडती है तो इससे पर्यावरण में अप्रत्याशित बद्लाव होते हैं, जिसमे सबसे पहला है कटाव. संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरणविद ने हिंदुस्तान को अति-खनन के लिए फटकार लगायी तो सरकार ने खनन के 1957 के बने कानून में फेर बदल करना शुरू किया.
अति-खनन का सबसे बड़ा कारण है अवैध खनन. अवैध खनन को सीधे शब्दों में समझा जाये तो ऐसा खनन जो आपके पर्यावरण को बहुत ज्यादा नुक्सान पहुंचा सकता है. मगर पर्यावरण की चिंता करने वाले , चिता पर जाने के लिए तत्पर लोग इसको रोकने की लडाई लड़ते रहते हैं, क्यूंकि वह जानते हैं बाबु “ये बालू नही सोना है, लड़ोगे तो मरोगे.”
9 मार्च 2012, नरेन्द्र कुमार सिंह, दिमाग पर जोड़ डालिए, भारतीय पुलिस सेवा का यह डीएसपी, जिसको खनन माफिया ने ट्रक से कुचल कर दर्दनाक मौत मारा था. याद आया? मोरेना, मध्य प्रदेश की घटना ? इस समाचार को पढ़ कर याद आ जाएगा आपको.

मौत के घाट उतारने वाले ड्राईवर को मौत की सज़ा नही हुयी. नरेन्द्र कुमार सिंह शहीद हो गए मगर देश नही बदला.
अगली घटना आगरा के समीप फिरोजाबाद की बता रहा हूँ, जहाँ फिर से कुचल कर कांस्टेबल रवि रावत की हत्या कर दी गयी.

पश्चिम की ओर बढें तो रामलाल यादव ने भी राजस्थान में यही भूल की और इसकी सज़ा फिर से मौत थी.

दक्षिण में विकशित माने जाने वाले बंगलुरु भी अछूता नही है , जहाँ भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी को हालत ने आत्महत्या के लिए मजबूर किया,
उन्हें बालू माफिया के खिलाफ सघन अभियान छेड़ने के लिए जाना जाता था, कौन जानता था की जान ही चली जायेगी.

इसी वर्ष की मध्य प्रदेश की घटना है , जहाँ भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी सोनिया मीना को जान से मारने की धमकी दी गयी.

17 नवम्बर 2017 , को बिहार में रोकथाम के दौरान गोलीबारी हुयी, तीन पुलिसवाले घायल हुए.

1162 करोड के इस अवैध धंधे को रोकने की कोशिश करने वालों को 10 लाख में सुपारी देकर हत्या करवा दिया जाता है. ऐसे ही बालू माफिया से लड़ाई बिहार के कई प्रशानिक अधिकारी को महँगी पड़ रही है, सच्चाई को दबाया जा सकता है मगर इसकी ताकत फिर ज्वालामुखी बन कर निकलेगी . समय यही है की जो अधिकारी इसका विरोध कर रहे हैं , उनका समाज खुल कर समर्थन करें.