“वर्किंग मदर”
अचानक से उसे अपना ही चेहरा विकृत लगने लगता है, लैपटॉप की स्क्रीन पर अपना अक्स काला चश्मा लगाये दिखता है. अरे! पर उसने तो अपना पारदर्शी चश्मा ही पहना था, ये काला कैसे हो गया. आँखों पर पट्टी ही तो बंधी थी उसके, की बीमार बच्चे को दूसरों के भरोसे छोड कर ड्यूटी पर आ गयी थी. कर्मठ कर्मचारी का तमगा लेना है? या तनख्वाह में से कट जाने वाले कुछ थोड़े से रुपयों की फ़िक्र है? कैसे उसकी ममता अंधी हो गयी और वो अपने रोते बिलखते बच्चे को छोड कर काम करने आ गयी.
जी बॉस. आपके केबिन में आना है? अभी आई.
अरे शाम हो गयी, जल्दी से काम ख़त्म कर के निकलना है, मेरा बच्चा बीमार है.
जी बॉस. काम पूरा कर के ही जाउंगी आज.
फाइनली काम पूरा हो गया, ऑटो ! ऑटो !
दरवाजा खोलो हर्षित.
अरे बेटा, हर्षित तो निक्कू को लेकर अस्पताल गया है, उसकी तबियत ज्यादा बिगड़ गयी थी.
ओह! पर उसने मुझे फोन क्यूँ नही किया?
किया था बेटा, कई बार किया पर तूने उठाया नही.
ओह मेरा फोन साइलेंट मोड पर था, उसकी २० मिस्ड कॉल्स हैं.
हेल्लो बॉस, हाँ हाँ मैं जानती हूँ मेरा प्रमोशन कल की प्रेजेंटेशन पर निर्भर है मैं कल सुबह जल्दी आ जाउंगी.
ऑटो! ऑटो! जल्दी से अपोलो हॉस्पिटल चलो.
-प्रीति पराशर