Wednesday, March 29, 2023
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बिहार में नवंबर नहीं तो कब और कैसे होंगे विधानसभा चुनाव?

कोरोना महामारी के बीच बढ़ते गर्मी के साथ देश में राजनीति भी गर्म है. उत्तर प्रदेश में बसों की राजनीति हो रही है तो मध्य प्रदेश में बंगलों की. अगर इस वक्त देश कोरोना संकट से नहीं जूझ रहा होता तो देश में सबसे बड़ा राजनैतिक मुद्दा बिहार चुनाव होता. बिहार विधानसभा का कार्यकाल नवंबर में समाप्त हो रहा है. कोरोना के बढ़ते मामले और इससे लड़ाई में सोशल डिस्टेंसिंग के महत्त्व को देखते हुए लोगों के मन में यह सवाल है कि क्या बिहार विधानसभा चुनाव समय पर होगा?
हालांकि यह फैसला चुनाव आयोग को करना है कि चुनाव कब और कैसे होगा, लेकिन बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी के डिजिटल चुनाव कराने वाले बयान के बाद यह चर्चा चल रही है कि अगर कोरोना संकट जल्द नहीं टला तो चुनाव कैसे होंगे?

फोटो – द हिन्दू 

समय पर हो जाए चुनाव
अगर समय रहते देश में स्थिति थोड़ी-बहुत सामान्य हो जाती है तो नवंबर में अभी पांच महीने है. चुनाव आयोग की पहली कोशिश यही होगी की बिहार चुनाव समय पर और सामान्य तरीके से हो जाए. लेकिन यह पूरी तरह इस बात पर निर्भर करता है कि कोरोना की स्थिति देश और बिहार में कैसे बदलती है. जाहिर है कि चुनाव होगा तो भीड़ जुटने की संभावना ज्यादा होगी. अगर रैलियों पर रोक लगा भी दिया जाए फिर भी मतदान के लिए बूथ पर भारी भीड़ लगती है. ऐसे में सभी जगह सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करवाने में प्रशासन के पसीने छूट जाएंगे. एक डर यह भी होगा की लोग ही शायद मतदान के लिए घर से कम बाहर निकले और मतदान का प्रतिशत काफी कम हो जाएगा. रैलियों और जनसभाओं के बिना अभी तक एक भी चुनाव नहीं हुए हैं. इसकी उम्मीद कम ही नज़र आती है कि राजनैतिक पार्टियां बिना प्रचार और जनसभाओं के चुनाव के लिए सहमत हों.
डिजिटल चुनाव की संभावना

सुशील मोदी  (फोटो – द प्रिंट )

बिहार के उपमुख्यमंत्री ने डिजिटल चुनाव की बात कही है. कोरोना काल में लोगों को डिजिटल माध्यम का महत्व तो समझ में आ गया है, लेकिन क्या डिजिटल माध्यम से भारत  में वर्तमान स्थिति में चुनाव संभव है और यह चुनाव कितना निष्पक्ष होगा? यह एक बड़ा सवाल है. हाल के वर्षों में विपक्षी दलों ने जिस प्रकार से ईवीएम में छेड़खानी और उसे हैक कर नतीजें प्रभावित करने का आरोप लगाया है. ऐसे में  यह मुश्किल है कि डिजिटल चुनाव जैसे किसी आइडिया से भी वे सहमत हों. भारत में ज्यादातर ग्रामीण इलाकों और कुछ शहरी इलाकों में भी इंटरनेट की सुविधा अच्छी नहीं है. अगर कहीं सुविधा भी है तो लोगों में इंटरनेट साक्षरता की कमी है. ऑस्ट्रेलिया और कनाडा जैसे देशों में इंटरनेट के माध्यम से डिजिटल चुनाव स्थानीय स्तर के चुनावों में प्रयोग किया गया है. वहां भी ऐसे चुनाव में तकनीकी खराबी और हैकिंग जैसे आरोपों ने इसकी निष्पक्षता पर सवाल खड़े किये हैं. ऐसे में भारत में एक बड़े राज्य का विधानसभा चुनाव इतनी जल्दी डिजिटल माध्यम से हो यह संभव नज़र नहीं आता.
अगर चुनाव डिजिटल माध्यम से या समय पर नहीं होते हैं तो क्या हैं अन्य विकल्प – 
क्या बढ़ाया जा सकता है विधानसभा का कार्यकाल?
एक चर्चा यह भी चल रही है कि वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल 6 महीने या एक साल के लिए बढ़ाया जा सकता है. फिर जब स्थिति सामान्य होगी तब चुनाव हो सकता है. लेकिन ऐसे करना शायद संभव नज़र नहीं आता. संविधान के अनुच्छेद 172(1) के अनुसार विधानसभा का कार्यकाल  राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान ही बढ़ाया जा सकता है. एक बार में अधिकतम एक साल के लिए विधानसभा के कार्यकाल को बढ़ाया जा सकता है और आपातकाल खत्म होने के 6 महीने के भीतर विधानसभा का चुनाव कराना अनिवार्य होगा. यह विशेषाधिकार भारतीय संसद को प्राप्त है. संविधान के अनुच्छेद 352 में केंद्रीय मंत्रिमंडल की सिफारिश पर राष्ट्रपति को देश में आपातकाल लगाने का अधिकार प्राप्त है.
लेकिन अभी न तो देश में आपातकाल लागू है और ना हीं संसद चलने के आसार है. शायद ही संसद का मानसून सत्र नियमित रूप से समय पर चल सके. ऐसे में विधानसभा  का कार्यकाल बढ़ाने वाली चर्चा व्यवहारिक नहीं लगती.
क्या राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है?
 

बिहार विधानमंडल ( फोटो -विधानसभा वेबसाइट)

विधानसभा का कार्यकाल समाप्त होने की स्थिति में एक विकल्प राष्ट्रपति शासन लगाने का भी है. संविधान के अनुच्छेद 356 के अनुसार अगर राज्य में संवैधानिक संकट की स्थिति पैदा होती है तब राष्ट्रपति खुद संज्ञान लेकर या राज्यपाल की सिफारिश पर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं. तब राज्यपाल राष्ट्रपति के नुमाइंदे के तौर पर राज्य के मुखिया होंगे. वर्तमान परिस्थिति में अगर चुनाव टालने की नौबत आती है तो राष्ट्रपति शासन का विकल्प केंद्र सरकार के पास है. लेकिन राज्य सरकार इसके लिए आसानी से मान जाएगी ऐसा कहना मुश्किल है. हालांकि केंद्र और बिहार दोनों जगह एनडीए की ही सरकार है लेकिन बिहार में सरकार का नेतृत्व नीतीश कुमार के हाथों में है.
ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा की चुनावी साल में कोरोना की लड़ाई के साथ-साथ बिहार में चुनाव और राजनैतिक परिस्थिति किस प्रकार बदलती है.

इस लेख को इस से पहले मेरे ब्लॉग  http://omprakash14.blogspot.com/ पर पब्लिश किया गया. पॉकेट डायरी के नाम से ये ब्लॉग आप भी पढ़ सकते हैं.

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