बाढ़, अपराध और टूटी हुयी सड़क के अलावा सीतामढ़ी राष्ट्रीय समाचार में कभी कभार ही नज़र आता है, सीतामढ़ी से हिमालय का दिखाई देना उतना ही सुखद था, जितना सुखद सीतामढ़ी के इस नज़ारे का चर्चा राष्ट्र भर में होना। जगत जननी माँ जानकी की जन्मभूमि सीतामढ़ी आजकल सुखद कारणों से राष्ट्रीय खबर बन चुकी है तो आज से 3 वर्ष पूर्व सीतामढ़ी के लाल प्रभात गौरव के द्वारा एवेरेस्ट फ़तेह करने की कहानी वापस लोगों के जुबान पर है.
जीवन परिचय :
- नाम :- प्रभात गौरव।
- ग्राम :- धनहारी ,सुरसंड,सीतामढ़ी।
- पिता :- श्री चंद्र भूषण मिश्र।
- माता :- केवला देवी।
- पढाई – १०वीं – बिहार बोर्ड
- १२वीं – डी ए वि पब्लिक स्कूल , हेहल , रांची
- बी.टेक – EE,बी.आई.टी. सिंदरी ,
- एम्.टेक – दिल्ली कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग।

सीतमढ़ी के सुरसंड ब्लॉक के धनहारी गाँव में श्री चंद्र भूषण मिश्रा और श्रीमती केवला देवी के छोटे बेटे प्रभात गौरव का जन्म 15 सितम्बर 1986 को हुआ। बचपन से ही चंचल और प्रतिभावान प्रभात के मन में अपने जन्मभूमि और राज्य के प्रति बहुत लगाव था और इसी कारण से राज्य का नाम रौशन करने का जज़्बा बचपन में ही पैदा हो गया.
परिवार बड़ा था, कुल ५ भाई बहन, सामान्य जीवन और बड़ी सोच का समन्वय ,संस्कृत और विद्वत परिवार में पिताजी बैंक में कार्यरत थे, वृहद् परिवार में भी सभी लोग अच्छे पदों पर आसीन थे. प्रभात मुख्यतः अपने सोच में डूबे रहते थे.
दसवीं की परीक्षा अच्छे अंक के साथ उत्तीर्ण होने के बाद रांची जाने का मौका मिला। वहां दयानन्द एंग्लो वैदिक पब्लिक स्कूल ( DAV) हेहल, रांची में पढाई की. उसके उपरांत इंजीनियरिंग में दाखिला लेने के लिए फॉर्म भड़ने में IIT-JEE का फॉर्म ही नहीं भड़ा । प्रभात के पिताजी बताते हैं इनके दृढ़ निश्चय की कहानी कहीं ना कहीं यहीं से शुरू होती है. बिहार में सामान्यतः गणित पढ़ने वाले सभी बच्चे IIT-JEE का परीक्षा अवश्य देते हैं , और प्रभात का परम मित्र ही गणित था. प्रभात की दिशा स्पष्ट थी। बी आई टी , सिंदरी में दाखिला हुआ, वहां से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढाई पूरी कर के महारत्न उपक्रम ONGC( OIL AND NATURAL GAS CORPORATION LIMITED) 2010 में शामिल हुए.

प्रभात कहते पहाड़ उनसे बात करते हैं. ONGC में शामिल होने के बाद एवेरेस्ट चढ़ने की चर्चा पिताजी से की थी, ये भी सोचने लगे थे की किन किन रिश्तेदारों को पैसे के लिए कहना है. कुल मिला के लगभग 50 लाख तक खर्च आने वाले इस सपने को पैसों के वजह से प्रभात तोड़ना नहीं चाहते थे. सपनों का मोल आखिर पैसे से कैसे होता. किस्मत सपनों का खुद पीछा करती है.
ONGC की ओर से ” Everest Expedition” की पहल जनवरी 2016 में ली गयी। प्रभात इससे पहले 400 मीटर भी नहीं दौड़ पाते थे, मगर एवेरेस्ट पर चढ़ने का जज्बा और मेहनत के बदौलत 22.28 मिनट में 5 किलोमीटर दौड़ गए.

पर्वतारोहण दुनिया के सबसे मुश्किल शौक में से एक है. एक पर्वतारोही विभिन्न किस्म के भौगोलिक परिस्तिथि का सामना करते हैं, या बर्फीली चादर हो, हिमनद हो, बर्फ लाडे चट्टान हों या नंगे पत्थर। पर्वत, एक पर्वतारोही से असीमित आकांक्षाएं रखता है, एक भी कमी इंसान को इस शौक से मीलों दूर लेकर चली जाती है. शारीरिक रूप से आपकी तंदुरुस्ती और खिलाडी वाले सारे गुणों का समन्वय , पहाड़ को चढ़ जाने के लिए लचीलापन, लगातार और कठिन परिश्रम और प्रशिक्षण किसी भी चोटी को फ़तेह करने के लिए बहुत ही अनिवार्य है।

एवरेस्ट पर चढ़ने के सपने अब धीरे धीरे वास्तविक रूप ले रहे थे. प्रभात खुद को तंदरुस्त और इतने ऊँचाइयों पर जाने के लिए शरीर को उसके अनुरूप बना रहे थे. एवेरेस्ट की चढ़ाई करने से पहले अपने तंदरुस्ती और किये गए प्रशिक्षण के प्राथमिक परीक्षा हेतु प्रभात ने माउंट रेणोके, 4880m, फ्रेंडशिप चोटी (5289 m ) हिमाचल प्रदेश, चंद्रभागा 13 (6264 m ), सतोपंथ पर्वत (7075 m ) और लाबुचे ,नेपाल (6119 m ) पर्वतों के चढ़ाई पूरी की. खुद की प्रशिक्षण पूरी होने के बाद अब एवेरेस्ट की बारी आयी.

अपने सपने अपनी जगह, माँ की ममता सर्वोपरि। अब एवेरेस्ट चढ़ने के लिए नेपाल जाने का समय आ गया था, प्रभात अपनी माँ को अपना एटीएम , बैंक डिटेल्स देने पहुँच गए थे. ये वक़्त कितना कठीण होता है , इसका अनुमान आप लगा सकते हैं. बहुत पर्वतारोही समिट के दौरान अपनी जान गवां बैठते हैं. एवेरेस्ट पर आज भी इतने पर्वतारोही बर्फों में दबे परे हैं. मगर कोई उन्हें वापस लाने वाला नहीं होता। ये बातें माँ के मन में जरूर गूँजी होगी। भावनाएं को दफना कर ही सपने सींचे जाते हैं।
माँ पिताजी का आशीर्वाद लेकर अब नेपाल जाने का वक़्त हो चला था. 1 अप्रैल 2017 को काठमांडू पहुँचने के बाद एवेरेस्ट से चढ़ाई से पहले जो प्रक्रिया है उसमे भी लगभग 15 दिन का वक़्त लग जाता है. 11 सदस्यों की टीम दुनिया के सबसे खतरनाक हवाई पट्टी लुकला से 9 दिन पैदल यात्रा करते एवेरेस्ट बेस कैंप तक पहुंची। स्थिति की जानकारी देने के लिए दिल्ली में 24X7 कण्ट्रोल रूम स्थापित किया गया था. पर्वतारोही के परिवार को सभी जानकारी यहीं से मिलती।

२२ मई २०१७, शुरुआती अवरोध को पार करते अब प्रभात और उनके ३ साथी कैंप 4 से एवेरेस्ट की चोटी पर चढ़ने के लिए तैयार थे, हवाएं दहाड़ रही थी, मानो धमका रही हो और कह रही हो रुके रहो. हवा की गति लगभग 160-200 किलोमीटर प्रति घंटा के आसपास थी और तापमान शून्य से 40 डिग्री निचे। चढ़ाई को दो टीम में विभाजित किया गया था, दूसरी टीम अभी पीछे ही थी. हवा की कमी और ऑक्सीजन सिलिंडर के रेगुलेटर में खराबी आ जाने के वजह से प्रभात के मित्र की तबियत भी बिगड़ रही थी. रात के 11 बजे तक जब मौसम में सुधार नज़र नहीं आया तो आगे बढ़ने के ख्याल को विराम दिया। प्रभात बताते हैं की प्रशिक्षण क्या करना है ये तो सिखाता ही है, कब क्या नहीं करना है , ये भी सिखाता है. जान रहेगी तो आदमी दूसरा प्रयास भी कर सकता है. अगर इस वक़्त वापस लौटने का निर्णय नहीं लिए होते तो शायद प्रभात ये बातें बताने के लिए नहीं बचे होते।

यही वक़्त था जब दिल्ली स्थित कण्ट्रोल रूम से प्रभात का संपर्क टूट गया। संपर्क टूटने की बात कण्ट्रोल रूम ने प्रभात के पिताजी को बता दी, माँ पिताजी सकते में आ गए. सॅटॅलाइट फ़ोन से प्रभात सिर्फ कण्ट्रोल रूम को सुचना दे सकते थे, घर बात नहीं कर सकते थे। ये वक़्त एक माँ के लिए कैसा होता होगा ये आप सोच सकते हैं, माँ को शायद प्रभात का दिया हुआ एटीएम और बैंक डिटेल्स की बात याद आ गयी होगी। इतने ही देर में कण्ट्रोल रूम से सन्देश आया की संपर्क वापस स्थापित कर लिया गया है, सबके जान में जान आयी।
प्रभात और उनके साथी कैंप 4 से वापस कैंप 2 जाने का निर्णय लेते हैं। आंधी में सारे टेंट तबाह हो चुके थे , सिर्फ एक टेंट सभी साथियों का बसेरा बना, बूट खोलने की कोशिश भी नहीं की गयी. डर था की आखिरी टेंट को भी अगर आंधी ने तबाह कर दिया तो ये बूट ही जान बचाएंगे। रात बीती और सुबह की पहली किरण के साथ सपनो को समेटते कैंप २ की तरफ कूच करने लगे, जब जब चोटी की तरफ देखता तो लगता की चोटी बुला रही हो। ऐसा लग रहा था जैसे जीवन भर इस पर्वत को निहारता रहूँ। रास्ता जाम था, रेस्क्यू मिशन चल रहा था और हम कैम्प २ की तरह बढ़ रहे थे। जोश घटता जा रहा था और कदम भारी होते जा रहे थे। सब निचे आ गए। अब कैंप २ पर आराम करने का समय आ गया था। शरीर के सारे अंग काम कर रहे थे, सबसे बड़े राहत की बात यही थी.

आराम के दो दिन हो गए, हालांकि २ दिन शरीर के पूर्णतः स्वस्थ होने के लिए पर्याप्त नहीं थे, ये 26 मई 2017 की बात है। भूख लग रही थी जो शरीर के कुछ हद तक ठीक होने का इशारा था। स्वाद का पता नहीं चल पा रहा था इसलिए मिर्ची पेस्ट मिला कर खाया। शारीरिक स्तिथि इतनी अच्छी तो नहीं थी , मगर चढ़ाई तो दिमाग करता है , शरीर का काम होता है उसका साथ देना। सही अनुशासन से दृढ़ निश्चयी व्यक्ति अपने मुकाम तक पहुँच सकता है। चार सदस्यों की टीम में से एक सदस्य ने यात्रा ऊपर नहीं करने का निर्णय लिया, यहाँ भी निर्णय लेना बहुत आवश्यक था। एक गलती इंसान की जान ले सकती थी। अब टीम में तीन लोग बचे, तीनो अब कैंप २ से वापस एवेरेस्ट फ़तेह करने के दृढ़ निश्चय से आगे बढे। कैंप ४ से वापस आकर कैम्प २ से वापस चढ़ाई करने का मतलब है की आप एवेरेस्ट दो बार चढ़ रहे हों। सामान्यतः ऐसा नहीं होता है।
सुबह ३ बजे चाय और नूडल्स खा कर कैंप ४ की ओर प्रभात की टीम कूच कर गयी। कैंप ३ से कैंप ४ के कठिनाइओं से अब हम पहले से वाक़िफ़ थे। crampon कभी कभी ठोस बर्फ में फंसता भी नहीं , कठिनाइयां अपार थी में भी कोई कमी नहीं थी। जैसे जैसे ऊपर जा रहे थे , वैसे वैसे एवेरेस्ट की चोटी पर पहुँचने के लिए जोश बढ़ता जा रहा था। पहाड़ फिर मुझे बातें कर रहे थे , बोल रहे थे की आ जाओ। एवेरेस्ट फतह कर लौटने वाले टीम रास्ते में मिले, उन्हें इशारों से शुभकामनाएं दी और आगे बढ़ते गए.

उचाईयों पर ऑक्सीजन की कमी से रक्तचाप निम्न स्तर पर पहुँच जाता है. धीरे धीरे बढ़ते बढ़ते हम सुबह के साढ़े तीन बजे बालकनी (27500 फ़ीट ) पहुंचे. बालकनी ही वह जगह है जहाँ सभी अपना ऑक्सीजन सिलिंडर बदल के आगे चोटी पर कूच करते हैं. क्यूंकि रेगुलेटर से ऑक्सीजन की मात्रा कम की हुयी थी , मेरे शेरपा ने बताया की अभी सिलिंडर में ऑक्सीजन पर्याप्त है और अगले पड़ाव “साउथ समिट ” पर उसे बदल दिया जाएगा।
सपनो के करीब बढ़ते हर कदम में खुशियां भड़ी परी थी. पानी के एक घुट आगे बढे और साउथ समिट के ठीक निचे तिब्बत से आने वाली आशा की किरण दिखी। सूर्य की किरण जैसे आशाओं से परिपूर्ण हो. क्षितिज से ऊपर,सूर्य की रौशनी से चोटियां सोने की तरह चमकती हुयी आपको निचे दिख रही हो, इस नज़ारे को शब्दों में व्यक्त करना असंभव है. सूर्योदय होते ही महसूस हुआ की सिर्फ तीन लोग ही एवेरेस्ट चढ़ रहे थे, और वो थी प्रभात की टीम.

प्रभात को अब चोटी दिख गयी, लग रहा था जैसे बच्चों के जैसे दौर के उसे बाहों में भर लें. हर कदम पहले से और भारी होता जा रहा था। भावनाएं मेरे बस में नहीं थी, आँखों में आँशु भड़ने लगे जो आँखों से गिरते गिरते बर्फ बन जा रहे थे। अब मन में बस एक ही बात कौंध रही थी की इतने मेहनत के बाद कोई छोटी सी भी ग़लती न हो जाए।

आख़िरकार वो वक़्त आ गया जब सपने पूरे हो गए, एवरेस्ट की चोटी पर पहुँच गए , लगा जैसे की माँ की गोद में हूँ। एवरेस्ट पर चढ़ने वालों में हमारे अलावा कोई नहीं था इसलिए समय की कमी नहीं थी, मगर उचाईओं पर ज्यादा वक़्त बिताना सुरक्षित नहीं होता है. 45 मिनट एवरेस्ट की चोटी पर बिताने का मज़ा ही कुछ और है. माँ पिताजी के तस्वीर साथ में ले गए थे उसे निकला, श्रीमद्भगवतगीता को प्रणाम किया और एक चिट्ठी निकाली जो हमेशा मुझे अपने अस्तित्व का याद दिलाती थी।

अब स्वयं से उठकर राष्ट्र को चढ़ाई समर्पित करने का वक़्त आ था, राष्ट्रीय ध्वज का अनावरण किया और मास्क निकाल के 53 सेकंड में राष्ट्रगान गाया . रोंगटे खड़े करने वाले इस कृत्य को लिम्का बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में स्थान मिला। 2017 में फतह करने वाले हम आखिरी टीम थे. और रूकने की इच्छा थी मगर शेरपा ने बताया की मौसम किसी वक़्त भी करवट ले सकती है। शेरपा से बेहतर एवेरेस्ट को कोई नहीं समझ सकता। अभियान के आधिकारिक फोटोग्राफर के नाते निकोन PAS , गोप्रो ५ और आईफोन के साथ था, आईफोन इतने ऊंचाई पर तुरंत डिस्चार्ज हो गया. PAS से भी सिर्फ कुछ फोटो ले पाए , गो प्रो ने अच्छा साथ दिया। चढ़ाई के लिए माता चोमोलुंग्मा को धन्यवाद दिया जिनके आशीर्वाद और अनुमति से ये चढ़ाई संभव हो पाया।

अब उतरने का वक़्त हो चला था. एवेरेस्ट से उतरना चढ़ाई से आसान नहीं होता, शरीर थक चूका होता है और सपने पूरे। लिम्का बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल होने वाली टीम के आगे की दास्ताँ पढ़िए अगले लेख में।
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