Tuesday, March 28, 2023
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सीतामढ़ी विधानसभा का इतिहास और भविष्य।

क्रिकेट और चुनाव दोनों अनिश्चितताओं का खेल है और संयोग से अभी दोनों का मौसम है।  देश “आईपीएल ” में डूबा है और बिहार चुनाव में डूबने जा रहा है।  लगभग १५ साल से नितीश कुमार बिहार के मुखिया बने रहे, विरोध की लहार तो बहती है मगर इतनी मजबूत नहीं होती की उनकी कुर्सी को हिला दे।  पिछले विधान सभा की बात हो या 2019 के लोकसभा की, लोगों ने नितीश कुमार को प्रत्यक्ष अप्रयत्यक्ष रूप से अपना नेता माना है। इस वक़्त स्पष्ट लड़ाई तेजस्वी यादव और नितीश कुमार  के बिच है।

सीतामढ़ी विधानसभा की वर्तमान स्तिथि का अंदाजा लगा पाना बहुत मुश्किल है।  पूर्व से भाजपा के ध्वजारोहक सुनील कुमार पिंटू सहयोगी खेमे से सांसद बन गए। भाजपा इस सीट को सहयोगी जद (यु) को देने के मन में बिल्कुल भी नहीं है, वहीं हज़ारो सुयोग्य उम्मीदवारों से लैश भाजपा के लिए उम्मीदवार का चयन भी एक कठिन कार्य है।  जनता यह निश्चित मान के चल रही है की उम्मीदवार का नाम भले ही कुछ भी हो, उम्मीदवार “वैश्य ” जाती से होगा।  वहीं दूसरी ऒर वर्तमान विधायक पिछले पांच वर्षों में कुछ विशेष छाप छोड़ने में सफल नहीं हो पाए हैं।  लोगों की माने तो सुनील कुशवाहा लोगों के पुकार को तो सुनते हैं मगर शहरी क्षेत्र के भविष्य को लेके प्रत्यक्ष रूप से कुछ अति विशेष नहीं कर पाए हैं।  दूसरी तरफ “यादव” और “मुस्लिम “नेताओं की भी महत्वाकांक्षा है की राजद से टिकट मिले।  न मिलने की स्तिथि में यादवों के वोट किसी और दिशा में प्रवाहित न हो जाए, शायद इस बात पर भी राजद विचार कर रही है।  कुल मिला कर क्रिकेट मैच की तरह ही अंतिम गेंद तक का संसय बरकरार है , उम्मीदवारी का ठोस भरोषा कोई नहीं दे पा रहा मगर ढकोंसले का बाजार गरम है।  हर दूसरा मोहल्ले का नेता अपनी टिकट की दावेदारी को लेकर दम्भ ले रहा है।  महागठबंधन से दूसरी पार्टी तो अपनी दावेदारी का सपना भी देखना नहीं चाहती। कुल मिलकर सीतामढ़ी विधान सभा से “वैश्य ” और ” यादव ” उम्मीदवार के बिच मुक़ाबला होने की सम्भावना है।

अब सीतामढ़ी विधानसभा के इतिहास पर नज़र डालते हैं. विगत तीस साल के जातिगत समीकरण कुछ इस प्रकार हैं।  विजेता और दुसरे नंबर पर रहने वाले उम्मीदवार की सूचि –

२०१५- सुनील कुमार कुशवाहा- राजद –  कुशवाहा –  सुनील कुमार पिंटू -भाजपा – वैश्य 

२०१० – सुनील कुमार पिंटू – भाजपा – वैश्य – राघवेंद्र कुमार सिंह – लोजपा – कुशवाहा 

२००५ – सुनील कुमार पिंटू – भाजपा – वैश्य – अक्टूबर चुनाव – खलील अंसारी – कांग्रेस – मुस्लिम 

सुनील कुमार पिंटू – भाजपा – वैश्य – फरवरी चुनाव – मोहम्मद ताहिर – राजद – मुस्लिम

२००० – हरिशंकर प्रसाद – भाजपा – वैश्य – (सुप्रीम कोर्ट के आदेश से )- शाहिद अली खान   – राष्ट्रीय जनता दल – मुस्लिम

शाहिद अली खान – राष्ट्रीय जनता दल – मुस्लिम (तकरीबन २ वर्ष तक , सुप्रीम कोर्ट के आदेश आने तक)

१९९५- हरिशंकर प्रसाद – भाजपा – वैश्य– शाहिद अली खान   – जनता दल – मुस्लिम

१९९० –  शाहिद अली खान – जनता दल – मुस्लिम – हरिशंकर प्रसाद – स्वतंत्र  – वैश्य

२००५ के बाद देखा जाए तो यादव और मुस्लिम उम्मीदवार को किसी भी पार्टी से टिकट नहीं मिला, इस चुनाव में दोनों समाज अपने अपने उम्मीदवारों की दावेदारी राजद से कर रहा है।  वहीं भाजपा में तो पिछले ३० साल के समीकरण से स्पष्ट है की दिशा बदलने वाली नहीं है और “वैश्य ” उम्मीदवार का आना तय है।  कुशवाहा जाती से नेतृत्व को छिना जाना एक तरफ यह भी इसारा करता है की निर्णायक मतदाता जिसके तरफ जाएंगे , पलड़ा उसी का भाड़ी रहेगा। ऐसी स्तिथि में वर्तमान विधायक सुनील कुमार का टिकट काटना राजद के लिए बहुत महंगा शाबित हो सकता है।

अगले लेख में आप सीतामढ़ी विधान सभा के विकास के मुद्दों को पढ़ेंगे।  क्योंकि वोट तो देना है लोगों को जाती के नाम पर इसलिए पहले इसके बारे में जानकारी दे दी गयी.

 

 

 

 

 

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