Tuesday, March 28, 2023
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उलझी हुयी राजनीति में फंसा रुन्नी सैदपुर।

रुन्नी सैदपुर कि राजनीति चुनाव दर चुनाव उलझती जा रही है। 2005 के फरवरी में भोला राय यहाँ राजद के टिकट से विधायक बने थे। ओक्टोबर् चुनाव तक माहौल बदल गया और जद (यू) को मजबूत उम्मीदवार गुड्डी देवी के रूप में मिल गया। ओक्टोबर् चुनाव से पहले जद (यू) समझिये राजद का गढ़ था। जिस पार्टी को जीत के आसपास का नंबर भी प्राप्त नही होता था उस पार्टी ने 2005 के अंत में जीत प्राप्त कर जद (यू) को खड़ा किया।

2010 में गुड्डी देवी ने शानदार वापसी की थी और सबसे कम उम्र में विधान सभा की सभापति बनने का मौका भी मिला। 2015 चुनाव में राजद जदयू गठबंधन में यह सीट राजद खेमे में चला गया। सूत्र बताते हैं कि लालू यादव ने इस सीट को लेकर विशेष मांग रखी थी जदयू के सामने। नीतीश कुमार कमजोड पड़े और लालू यादव मजबूत। उस वक़्त के सिटिंग विधायक को बैठा कर सीट बदल दिया गया। रालोसप और भाजपा कि ओर से गठबंधन उम्मीदवार बने पंकज मिश्रा, राजनीति में नये थे और भाजपा के मोदी लहर पर तैरते हुए शानदार 44000 वोट लेकर आये मगर राजद जदयू गठबंधन कि शानदार तैयारी के सामने टिक नहीं पाये। सिटिंग विधायक गुड्डी देवी ने छ्ले जाने के बाद चुनाव लड़ने का ठाना और अपने बलबूते 16000 वोट लाने में सफल हुयी।

पाँच वर्ष के मंगीता देवी के कार्यकाल को ना तो राजद के कार्यकर्ता ने सराहा नाही जनता ने। लोगों का नियमित आरोप रहा कि विधायक उनसे दूर ही रहते हैं। 2020 का चुनाव सर पर है, जदयू से टिकट के प्रबल दावेदार गुड्डी देवी को फिर से छला गया और टिकट चला गया पंकज मिश्रा के पास। राजनीति भी गजब है, कल का विरोधी पार्टी से जुड़ते ही रंग बदल देता है। खैर इस चुनाव में देखें तो एंडीए की घटक रही लोजपा एक अच्छे रणनितिक सोच के साथ सभी विधानसभा से जदयू के खिलाफ मुहिम छेड़ रखी है। शायद जीतने कि जीतनी भी लालसा हो ये तो पता नही, मगर जदयू को हराना लोजपा की पहली नीति है। जितना सीट लोजपा जीतेगा aur जदयू हारेगी उतना ही मजबूत लोजपा एंडीए में होगा। ऐसे भी लोजपा की घोषणा है की चुनाव बाद भाजपा को समर्थन देंगे, इस वजह से क्षुब्ध नेता और बहुत जगहों के भाजपा कार्यकर्ता अंदर ही अंदर लोजपा के समर्थन में उतर चुके हैं । आशंका है की निर्दलीय गुड्डी देवी लोजपा के टिकट से मैदान में उतर जाए, समान्य दिखने वाला चुनाव रोमांचक हो सकता है। इस मुक़ाबले में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के संतुक्त विरोधी एक नयी दिशा में अपने मताधिकार को ले जा सकते हैं।

जातिगत समीकरण राजद के पक्ष में झुकता दिख रहा है, मुस्लिम और यादव स्पष्ट दिशा के साथ मंगीता देवी के माध्यम से तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं और राज्य में अपनी एकजुटता की खोयी पहचान को पुनः जागृत करना चाहते हैं।

भूमिहार वोटर का रुझान तेजस्वी और नीतीश से बराबर दूरी रखने के ओर बढ़ सकता है, ऐतिहासिक तौर पर भूमिहार लोजपा से ज्यादा दूर कभी नही गए। प्रथम फेज़ के लोजपा सूची में आधे से ज्यादा उम्मिदवार भूमिहार हैं।

पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग इस चुनाव को एक नया रंग देगा। इस चुनाव की असली चाभी अब इनके हाथों मे ही है।

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