इतिहास से तकल्लुफ ना रखने वाले क्रांतिकारी राजनीतिक मित्रों के लिए खास कर ये लेख लिख रहा हूँ। लेख उसी प्रकार से अराजनीतिक है जिस प्रकार आज के दौर का किसान आंदोलन। एक नेता विहीन आंदोलन जो सिर्फ और सिर्फ शाहीन बाग की नाकामी को कामयाबी में तब्दील करने की चेतना के साथ शुरू की गई हो। लेख का चित्रांश पहले लिख रहा हूँ , क्यूंकी मैं नही चाहता की कोई मुझे निष्पक्ष समझ बैठे। मैं एक पक्ष से रिश्ता रखता हूँ, और पक्षपात इंसानी प्रवृति है , आगे लेख में आपको दिख जाएगी।

आज की कहानी मालाबर से शुरू होती है, जी हाँ कैलीकट और वायनाड के दक्षिण और आज के कोचीन के उत्तर में दक्षिणी मलाबार क्षेत्र की 100 साल पुरानी कहानी सुनाता हूँ। ठीक सौ साल हुये हैं तो जिक्र आवस्यक है, भारतीय राष्ट्रिय काँग्रेस (INDIAN NATIONAL CONGRESS) के समर्थन से मालबर क्षेत्र के किसानो ने अपने अधिकार की लड़ाई के लिए आवाज़ उठाई, मलाबार क्षेत्र में मुख्यतः भूमिहीन किसान बहुसंख्यक होते थे। किसानो की मांगे जायज़ थी और बिना बुलाये भूमिहीन किसानों का समूह अचानक आंदोलन का रूप ले लिया। शुरुआत में किसानो ने बढ़ते जनसमूह को अपनी ताक़त समझी और ताक़त जब महात्मा गांधी के समर्थन से लाखों गुणी हो गई तो अचानक से किसानों का आंदोलन “खिलाफत आंदोलन ” का हिस्सा बन गया । अब ये बताना की “खिलाफत आंदोलन ” क्या था इस चर्चा को एक नई सड़क पर लेकर चला जाएगा मगर इतना समझिए की पूरे विश्व में खलीफा या इस्लामिक साम्राज्य की स्थापना हो इसके समर्थन में वैश्विक आंदोलन चला जिसका नाम “खिलाफत आंदोलन” पड़ा। महात्मा गांधी व्यक्तिगत रूप से दो बार इस आंदोलन में शामिल हुये, मलाबार में इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे “अली मुसलियार “, खुद किसान तो नही थे मगर सान 1920 के अंत तक कराची में खिलाफत आंदोलन के अहम हिस्सा रह चुके थे। मलाबार के इस क्षेत्र से इस व्यक्ति का रिश्ता सिर्फ 4 साल पूराना था मगर यह भरोषा था की मलाबार के स्थानीय मुसलमानो के सहयोग से इस्लामिक राष्ट्र की स्थापना की जा सकती है । कांग्रेससी इस बात को भली भांति जानते थे और वैश्विक खिलाफत आंदोलन के समर्थक होने के नाते चुपचाप देख देख कर मज़े ले रहे थे। आंदोलन का 20वां दिन आया और चुन चुन कर हिन्दू ब्राह्मणो की हत्या होनी शुरू हो गई, प्रत्यक्ष रूप से हत्याएँ की जाने लगी और जो हिन्दू इस आंदोलन को पहले से समर्थन दे रहे थे उन्होने चुपचाप इस नृशंता को देखते रहे। ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जो किसान आंदोलन था , वह थाना के लूट में और ब्रिटिश अधिकारियों के खिलाफ भी mob violence का रूप ले लिया। मुख्य बात यह थी की काँग्रेस तब तक इस आंदोलन के साथ थी जब तक आंदोलन ने हिन्दू-मुस्लिम दंगे का रूप न ले लिया हो। आखिरकार ब्रिटिश सरकार ने करा रूख अख्तयार करते हुये वहाँ “मार्शल कानून” लागु किया , जिसे आप आज का कर्फ़ुई भी कह सकते हैं । ब्रिटिश और गुर्खा रेजीमेंट को इसे शांत करने की जिम्मेवारी दी गई, इसी दौरान दंगाइओन के भड़े रेल के डब्बे में सांस न लेने के वजह से 90 दंगाइओन की मौत हो गई। इस दुर्घटना को “wagon tragedy ” ऑफ मलाबार के रूप में जाना जाता है। इस पूरे दंगे का सामूहिक नाम था “मोपल्ला विद्रोह” । नाम पहले नही बताया क्यूंकी मैं चाहता था की ऊपर की बातें पढ़ें।

आज फिर 100 साल बीतने के बाद भी कुछ राजनीतिक दलों के द्वारा देश में इस तरह की अस्थिरता लाने की कोशिश की जा रही हैं। मुसलमान मित्रों को तब भी धर्म के नाम पर मूर्ख बनाया जाता रहा और आज भी बनाया जा रहा है। फर्क ये भी नही की मूर्ख बनाने वालों का गोत्र बदल गया हो, वो आज भी काँग्रेस के नाम से जाने जा रहे हैं।
मैं भाजपा और हिंदुस्तान के वर्तमान सरकार के इस कानून का विरोध करता हूँ और मैं इस बिन्दुवार तरीके से आपके साथ साझा करूंगा। ये कह देना की किसानो को बेचने की स्वतन्त्रता मिलेगा काफी नही है , मेरे गाँव में व्यापारी एमएसपी से कम में खुशी खुशी हमसे खरीद के ले जाते हैं और आगे किसी और को बेच देते हैं। घर से ले जाते हैं तो कीमत अलग होती है, खेत से सीधे खरीद लें तो कीमत और सस्ती हो जाती है । किसान मजबूर होते हैं एमएसपी धड़ी की धड़ी रह जाती है। एमएसपी सिर्फ के कॉन्फ़िडेंस है जो किसानो को जिंदा रहने की ऊर्जा देता है । ये ऊपर की बातें बिहार के किसानो पर लागू है , स्तिथी जैसे जैसे आप पश्चिम की ओर बढ़ेंगे , बदलती चली जाएगी ।
भारतीय किसान संघ के आधिकारिक घोषणा से मैं भी तकल्लुफ रखता हूँ और निम्न बिन्दुओं का समर्थन करता हूँ।
सुधार 1: अगर सरकार किसान को अनाज मंडी से विमुख कर रही है तो नए प्राइवेट व्यापारी, जो किसानों की उपज ख़रीदेंगें वो अपना कार्टल न बना लें, इसको रोकने के लिए क़ानून में व्यवस्था होनी चाहिए.
सुधार 2: भारत की खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करना है तो सरकार को किसान को भी सुरक्षित करना होगा. इसलिए किसान को अपनी उपज की लागत से 20 से 30 फ़ीसद ऊंची क़ीमत मिले, ये सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए. यह व्यवस्था क़ानून के जरिए ही सुनिश्चित हो. केंद्र सरकार को इसके लिए ‘फ्लोर प्राइस’ तय करना चाहिए.
सुधार 3: नए कृषि क़ानूनों में कॉन्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग की व्यवस्था की गई है. किसान किसी भी विवाद की सूरत में मामले को एसडीएम के पास ले जा सकते हैं. लेकिन अश्विनी महाजन की राय में कॉन्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग में अगर कोई विवाद होता है तो एसडीएम के पास जाने के बजाय अलग से ‘किसान कोर्ट’ की व्यवस्था की जानी चाहिए. इसके पीछे वो वजह भी बताते हैं. उनके मुताबिक़ आम किसान की एसडीएम तक पहुँच नहीं होती.
सुधार 4: कॉन्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग में किसान को अपनी फ़सल की लागत तब मिलती है जब फ़सल की कटाई पूरी हो जाती है. केंद्र सरकार को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि कुछ समय के अंतराल पर क़िस्तों में कुल तय क़ीमत का भुगतान किसानों को होता रहे. ऐसा इसलिए कि एक बार जब किसान और प्राइवेट पार्टी के बीच कॉन्ट्रैक्ट हो जाता है तो बीज बोने, कीटनाशक के छिड़काव से और सिंचाई तक में किसान को बहुत पैसा ख़र्च करना पड़ता है. साथ ही, नई व्यवस्था में अब ‘बिचौलिए’ बचे नहीं, जिन्हें ख़ुद बीजेपी नेता किसानों का ‘एटीएम’ कहते आए हैं. तो सरकार को उनके लिए नई एटीएम व्यवस्था तय करनी चाहिए.
आखिर में बाबा भीमराव अंबेडकर ने जो मोपला त्रासदी पर कहा उसके कुछ अंश।
B. R. Ambedkar said on the rebellion:[33]
The blood-curdling atrocities committed by the Moplas in Malabar against the Hindus were indescribable. All over Southern India, a wave of horrified feeling had spread among the Hindus of every shade of opinion, which was intensified when certain Khilafat leaders were so misguided as to pass resolutions of congratulations to the Moplas on the brave fight they were conducting for the sake of religion”. Any person could have said that this was too heavy a price for Hindu-Muslim unity. But Mr. Gandhi was so much obsessed by the necessity of establishing Hindu-Muslim unity that he was prepared to make light of the doings of the Moplas and the Khilafats who were congratulating them. He spoke of the Mappilas as the “brave God-fearing Moplahs who were fighting for what they consider as religion and in a manner which they consider as religious “.
B. R. Ambedkar said on the rebellion:[34]
The Hindus were visited by a dire fate at the hands of the Moplas. Massacres, forcible conversions, desecration of temples, foul outrages upon women, such as ripping open pregnant women, pillage, arson and destruction— in short, all the accompaniments of brutal and unrestrained barbarism, were perpetrated freely by the Moplas upon the Hindus until such time as troops could be hurried to the task of restoring order through a difficult and extensive tract of the country. This was not a Hindu-Moslem riot. This was just a Bartholomew. The number of Hindus who were killed, wounded or converted, is not known. But the number must have been enormous.
शेष कहने की यही चेस्टा है की किसान आंदोलन के साथ साथ कृषि क्रान्ति की भी आवश्यकता है । राजनीति के प्यादे न बने न आसपास के लोगों को बनने दें। किसान आंदोलन करना है तो स्वामी सहजनन्द सरस्वती के बातों को भी ध्यान में रखें , जिनहोने किसान आंदोलन को क्रान्ति का रूप दिया।